Raja Ram Mohan Roy

Raja Ram Mohan Roy | राजा राम मोहन राय

मेरे प्रिय दोस्तों इस पोस्ट में हम Raja Ram Mohan Roy | राजा राम मोहन राय के बारें में विस्तृत रूप से बतयएंगे। इस लेख में आप इनकी जन्म, ब्रह्म समाज की स्थापना, सामाजिक सुधार के लिए किए गए प्रेस एवं अन्य सभी इनसे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। 

बंगाल में प्रारंभ हुए सुधार आंदोलन का नेतृत्व राजा राममोहन राय ने किया।  इसलिए इन्हें नवजागरण का अग्रदूत, सुधार आंदोलन का प्रवर्तक, आधुनिक भारत का पिता एवं नवप्रभात का तारा कहा जाता है। 

Raja Ram Mohan Roy Born | राजा राम मोहन राय का जन्म

राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 ई. को बंगाल के  एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था बचपन से ही उनकी बुद्धि बहुत तेज थी, और वह स्वभाव से विद्रोही थे।  15 वर्ष की आयु में इनका एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें मूर्ति पूजा की आलोचना की गई थी।  इस बात से इनके पिता से मतभेद हो गया और यह घर से निकल गए। 

Raja Ram Mohan Roy Images | राजा राम मोहन के चित्र

Raja Ram Mohan Roy

Raja Ram Mohan Roy History | राजा राम मोहन का इतिहास

1803 ई में अपने पिता की मृत्यु के बाद कंपनी की सेवा में आ गए, जॉन डिगबी ने इन्हें अपना दीवान नियुक्त किया।  डिगवी के साथ उन्होंने 1814 ई तक कार्य किया।  इस दौरान जिन्हें अंग्रेजी ज्ञान वर्धन का अवसर मिला। 

उन्होंने एक ऐसी लेखन शैली विकसित की जिसकी प्रशंसा करते हुए बेंथम ने कहा था, कि इस शैली के साथ हिंदुओं का नाम ना होता तो हम यह समझते कि यह बहुत ही कुछ शिक्षित अंग्रेजी कलम से निकली है। 

राजाराम स्वतंत्रता एवं राष्ट्रीयता के कट्टर समर्थक थे, 1821 में नेपल्स की क्रांति दल से यह काफी दुखी हुए थे।  1823 में स्पेनिश क्रांति अमेरिका में सफल रही तो इन्होंने इसकी खुशी में भोज देकर जश्न मनाया। 

1823 में में ऐडम्स के आदेश से प्रेस की स्वतंत्रता का हनन हुआ था।  इसके विरोध में राम मोहन राय द्वारिका नाथ टैगोर व अन्य लोगों ने एक वाद उच्चतम न्यायालय में दायर किया।  बाद में खारिज हो जाने पर इन्होंने काउंसिल में अपील की। 

राजा राममोहन राय 1827 एक्ट का विरोध किया जिसमें धार्मिक आधार पर हिंदुओं मुसलमानों में विभेद किया गया था। 

Raja Ram Mohan Roy Books | राजा राम मोहन की पुस्तकें

 राममोहन राय बहु भाषा विद थे।  उन्होंने अरबी फारसी तथा संस्कृत का अध्ययन किया। इसके अलावा अंग्रेजी में लैट्रिन जर्मन और भाषाएं भी सीखें।  इन्होंने कुरान बाइबिलहिंदू एवं अन्य भारतीय धार्मिक मतों के धर्म शास्त्रों का गहन अध्ययन किया।  इनका पहला ग्रंथ फारसी भाषा में  तोहफ़त-उल-मुहदीन (एक ईश्वर वादियों को  उपहार) 1809 ई  में प्रकाशित हुआ। 

राजा राममोहन राय  भारतीय पत्रकारिता के भी अग्रदूत थे।  इन्होंने बंगाल भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।  स्वयं बांग्ला व्याकरण का संकलन किया।  राजा राममोहन राय ने 1821 में बंगाली पत्रिका संवाद कौमुदी को प्रकाशित किया और अंग्रेजी में ब्रह्म मैगजीन भी निकाली। 

राजा राम मोहन राय का समाज के प्रति योगदान

राजा राममोहन राय ने मूर्ति पूजा का विरोध किया, और एकेश्वरवाद को सब धर्मों का मूल बताया।  इन्होंने जातिप्रथा को इस आधार पर बुरा बताया कि इसने हमारे समाज को कुछ उच्च एवं निम्न जैसे अप्राकृतिक पुत्रों में विभाजित कर दिया, जिसके चलते हमारे समाज का एक बहुत बड़ा समुदाय राष्ट्रीयता की भावनाओं से दूर हो जा रहा है। 

राजा राममोहन राय  ने कंपनी की सेवा से त्यागपत्र देकर इन्होंने 1814 से 15 ई में आत्मीय सभा गठित की 18 सो 16 ईस्वी में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की। 

राय ने 18 से 20 ईसवी में इन्होंने प्रीसेप्टस आफ जीसस लिखी। जो 1823 ईस्वी में जॉन डिगवी के काफी प्रयासों से लंदन में प्रकाशित हुई। इसमें इन्होंने ईसाई  (पिता, पुत्र, परमात्मा) अर्थात चमत्कारी कहानियों का विरोध कर मात्र न्यू टेस्टामेंट के नैतिक तत्वों की प्रशंसा की। 

हिंदू धर्म के प्रति इन्हें आलोचनात्मक दृष्टिकोण को देखते हुए, इनके ईसाई मित्रों ने यह विश्वास किया था, कि अंततः यह इसाई धर्म स्वीकार कर लेंगे परंतु ऐसा हुआ, नहीं एक बार जब यह यूनिटेरियन चर्च से प्रार्थना करके लौट रहे थे, उस समय ताराचंद चक्रवर्ती योग जन शेखर देव ने एक पूजा स्थल की स्थापना का जिक्र किया। 

ब्रह्म समाज की स्थापना

20 अगस्त 1828 को ब्रह्म सभा के नाम से एक नए समाज की स्थापना की, जिसे बाद में ब्रह्म समाज कहा गया।  ब्रह्म सभा का उद्देश्य था राजा राममोहन राय की मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म सुधार लाना, इस समाज में प्रत्येक शनिवार को सायाकाल को सभी सदस्य इकट्ठा होते थे। 

 ब्रह्म समाज की अवधारणा की शुरुआत आवश्यकता तथा आचार संबंधी बातों पर आधारित थी।  इसमें धार्मिक गुरुओं की आवश्यकता नहीं मानी गई । 

ब्रह्म समाज द्वारा किए गए कार्य

ब्रह्म समाज द्वारा समाज सुधार का कार्य भी किया गया इन्होंने जाति प्रथा व्यवस्था, बाल विवाह का विरोध किया। राजा राममोहन राय स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के कट्टर समर्थक थे।  सती प्रथा का विरोध किया और स्त्री पुरुष दोनों के लिए आधुनिक शिक्षा पर जोर दिया। 

राजा राममोहन राय डच घड़ी साज डेविड हेयर के सहयोग से 1817 एचडी में कोलकाता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की।  1825 में वेदांत कॉलेज की स्थापना की।  सती प्रथा इन के समय की सबसे ज्वलंत समस्या थी, इसके विरोध के लिए इन्होंने अपनी पत्रिका संवाद कौमुदी का उपयोग किया।

सरकार द्वारा 1823 ई में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाए जाने का स्वागत किया, और इस प्रक्रिया में वादियों द्वारा दायर याचिका का इंग्लैंड में विरोध किया। 

राजा राम मोहन राय को उपाधि

मुगल सम्राट अकबर  द्वितीय ने 18 ईसवी में इन्हें राजा की उपाधि से विभूषित किया ।  मुगल दरबार की तरफ से राय को इंग्लैंड भेजा गया। यह प्रथम भारतीय थे जो समुद्री मार्ग से इंग्लैंड पहुंचे और भारतीयों की मांगों को ब्रिटिश सरकार के सामने रखी ।  प्रिवी कौंसिल द्वारा सती प्रथा को अवैध घोषित करवाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। 

Raja Ram Mohan Roy Death

राजा राममोहन राय 1831ई में इंग्लैंड पहुंचे, और वहीं पर इनका देहांत हो गया।

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FAQ-

Q. राजा राममोहन राय क्यों प्रसिद्ध है?

राजा राम मोहन राय ने समाज को सुधारने के लिए कई ग्रंथों को लिखा था। धार्मिक संघों की सोच सामाजिक एवं राजनीतिक बदलाव के उपकरणों के रूप में की। वे वर्ष 1815ई.  में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन एवं वर्ष 1828ई. में ब्रह्म सभा (जो कुछ समय बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।

Q.राजा राममोहन राय का उद्देश्य क्या था?

1828 में, राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म सभा की स्थापना की-
 ब्रह्म समाज का प्रमुख उद्देश्य था, शाश्वत ईश्वर की पूजा करना। जो पंडितों (पुरोहितों) के विरुद्ध था। यह केवल प्रार्थना, ध्यान, एवं शस्त्रों के पढ़ने का केंद्रित था। मुख्यरूप से ईश्वर ब्रह्म समाज की स्थापना पाखंडों को समाप्त करने का था।

Q. राजा राम मोहन राय की मृत्यु कहाँ हुई थी?

राजा राममोहन राय 1831ई में इंग्लैंड पहुंचे, और वहीं पर इनका देहांत हो गया।

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