भारतकीप्राकृतिकवनस्पतिएवंमहहत्व

भारत की प्राकृतिक वनस्पति एवं महत्त्व

भारत की प्राकृतिक वनस्पति एवं महत्त्व भारत ही नहीं,पूरी दुनिया में है। हम सब के घर,मैदान,वन एवं पहाड़ियों पर अनेक प्रकार के पेड़,पौधे एवं झाड़ियाँ देखने को मिलती है । भारत देश जैव विविधता वाले देशों मे से एक है । भारत देश में लगभग 47000 हजार से ऊपर कई तरह के पौधे पाए जाने के कारण भारत विश्व में दसवें स्थान एवं एशिया के देशों में चौथे स्थान पर है ।

भारतकीप्राकृतिकवनस्पतिएवंमहहत्व

 

 

भारत में लगभग 15000 फूलों के पौधे पाए जाते है, इस देश में बहुत से पौधे बिना फूलों के भी पाए जाते है,जैसे – फ़र्न ,शैवाल,कवक आदि पाए जाते है ।

वनस्पति का अर्थ – “वनस्पति – जगत का अर्थ किसी विशेष क्षेत्र में किसी समय में पौधे की उत्पत्ति से है” ।

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भारत की प्राकृतिक वनस्पति एवं महत्त्व : भारत वनस्पति में विविधता के प्रमुख कारण निम्न है –

  • भूभाग – प्राकृतिक वनस्पतियों में भूमि का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है । क्योंकि पर्वत,मैदान, पठार पर तथा शीतोष्णकटिबंध में एक ही तरह के पेड़ पौधे नहीं पाए जाते है ।
  • मृदा – भिन्न –भिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार की मृदा पाए जाने के कारण ही प्राकृतिक वनस्पतियों में भिन्नता पाई जाती है जैसे – मरुस्थल में कटीले,पर्वतों पर शंकुधारी,नदियों के डेल्टा में पर्णपाती वृक्ष पाए जाते है ।
  • तापमान – तापमान और वायु के नमी के कारण प्राकृतिक वनस्पतियों में विभिन्नता पाई जाती है ।
  • वर्षा – भारत में अलग – अलग स्थानों पर अधिक एवं कम वर्षा होती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा वाले क्षेत्रों की अपेक्षा सघन वन पाए जाते है ।

भारत की प्राकृतिक वनस्पति एवं महत्त्व  : भारत की वनस्पति के प्रकार – जलवायु के स्थिति के आधार पर प्राकृतिक वनस्पतियों विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया जाता है –

  1. उष्णकटिबंधीय वर्षा वन या सदाबहार वन
  2. उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन
  3. उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन एवं झाड़ियाँ
  4. पर्वतीय वन
  5. मैंग्रोव वन

1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन या सदाबहार वन

  • इस प्रकार वन या प्राकृतिक वनस्पति भारत के पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, लक्षद्वीप,अंडमान और से निकोंबार द्वीप समूहों, असम के ऊपरी भाग एवं तमिल नाडु तक सीमित है ।
  • इस प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति उन स्थानों पर विकसित होती है जहां पर वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक एवं कुछ समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है ।
  • इस तरह के प्राकृतिक वनस्पति में पेड़ों की ऊँचाई 60 मीटर से अधिक होती है ।
  • ये वन हर – भरे रहते है, और ये अपनी पत्तियां नहीं गिराते है।
  • इन्हे “सदाबहार” वन भी कहा जाता है।
  • उष्ण कटिबंधीय वन के वृक्ष – इस प्रकार के वनों में मुख्यतः – आबनूस (एबोनी ), महोगनी,रोजवुड,रबड़ एवं सिनकोना,बांस,नारियल,आदि वृक्ष पाए जाते है ।
  • कुनैन को सिनकोना नामक वृक्ष से प्राप्त किया जाता है।
  • पश्चिमी घाट को “सह्याद्रि” कहा जाता है,यहाँ पर पाए जाने वाले वृक्षों को “शोला” नाम से जाना जाता है ।

2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन या मानसूनी वन

  • भारत के प्राकृतिक वनस्पति में उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन भारत के सबसे बड़े क्षेत्रों में विस्तृत है ।
  • इस प्रकार के वनों का क्षेत्र जहां पर वर्षा 70 से 200 सेंटीमीटर तक वार्षिक वर्षा होती है ।
  • जल के उपलब्धि के आधार पर इन वनों को दो वर्गों आर्द्र एवं शुष्क पर्णपाती वनों मे में बाँटा जाता है ।
  • आर्द्र पर्णपाती वन – इस तरह के वन ऐसे स्थानों पर पाए जाते है, जहां पर वर्षा 100 से 200 सेंटीमीटर तक होती है ।
  • ऐसे वन अपनी पत्तियां शीत ऋतु के बाद एवं ग्रीष्म ऋतु के पहले गिरा देते है ।
  • आर्द्र पर्णपाती वन भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों एवं हिमालय के गिरिपाद,पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलानों पर तथा ओडिशा में पाए जाते है ।
  • आर्द्र पर्णपाती वनों में मुख्य रूप से – सागवन,साल,शीशम,महुवा आंवला,कुसुम,चंदन आदि पाए जाते है।
  • शुष्क पर्णपाती वन – इस प्रकार के वन मुख्यतः भारत में उं स्थानों पर पाए जाते है,जहां पर वर्षा 70 से 100 सेंटीमीटर तक होती है।
  • शुष्क पर्णपाती वनों काँटेदार वृक्ष पाए जाते है ।
  • इस प्रकार के वन मुख्यतः उत्तर प्रदेश एवं बिहार के क्षेत्रों में पाए जाते है ।
  • शुष्क पर्णपाती वनों में वृक्ष मुख्य रूप से जैसे – साल, पीपल,नीम आदि पाए जाते है ।

3.उष्ण कटिबंधीय कटीले वन एवं झाड़ियाँ

कंटीलेवन

 

 

  • भारत में उष्ण कटिबंधीय कटीले वन उं स्थानों पर पाए जाते है, जहां पर वरसात 50 सेंटीमीटर से कम होती है ।
  • इस प्रकार के वन राजस्थान,पंजाब,गुजरात,हरियाणा,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश, आदि स्थानों पर पाए जाते है ।
  • इसप्रकार के वनों मे पत्तियां वर्ष भर पर्णहरित रहती है।
  • पत्तियां छोटी होती है,जिससे जल का वाष्पीकरण कम हो सके ।
  • इस प्रकार के वन के पेड़ों की जड़ें काफी लंबी गहराई तक होती है ।
  • उष्णकटिबंधीय कटीले वन के अंतर्गत – बबूल,बेर,खजूर, खैर नीम,खेजड़ी,एवं पलास आदि पाए जाते है ।

4. पर्वतीय वन 

  • पर्वतीय क्षेत्र के वनों में तापमान में कमी एवं ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पतियों में भी अंतर दिखाई देता है।
  • पर्वतीय क्षेत्र में 1000मी० से 2000मी० – तक की ऊँचाई के वाले क्षेत्रों में आर्द्र शीतोष्णकटिबन्ध के वन मिलते है । इनकी पत्तियां चौड़ी होती है । वृक्ष के अंतर्गत ओक,चेस्टनट,जैसे वृक्षों की अधिकता होती है ।
  • 1500 से 3000 मीटर तक की ऊँचाई – के वन शंकुधारी की तरह के वृक्ष पाए जाते है, जैसे – चीड़ (पाइन) ,देवदार सिल्वर-फ़र, सीडर आदि पाए जाते है।
  • 3600 मीटर की ऊँचाई पर वन – इतनी ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबन्ध के वन एवं घास के मैदान का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है । इसके प्रमुख वृक्ष- जैसे सिल्वर फ़र,जूनियर पाइन,वर्च आदि ।
  • हिमरेखा के निकट वन –
  • हिमरेखा के निकट पहुंचते –पहुंचते वृक्षों का आकार झाड़ियों से बदलकर अल्पाइन घास में बदल जाती है, इन घासो का उपयोग गुज्जर एवं बक्करवाल घुमंकड़ जातियों द्वारा पशुचारण के लिए किया जाता है, इसमें मास, लिचनघास पाए जाते है।

दक्षिण भारत के वनों का विवरण

  • दक्षिण भारत में पर्वतीय वन मुख्य रूप से प्रायद्वीप के तीन भागों –पश्चिमी घाट, विंध्याचल, एवं नीलगिरि मे मिलते है ।
  • ये तीनों पर्वत शृंखलाये उष्णकटिबंध में पड़ती है ।
  • इन पर्वत शृंखलाओ की ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 1500 मीटर है, ऊँचाई वाले भागों पर शीतोष्ण कटिबन्ध के वन और निचले भाग में उपोषणकटिबंध के वन पाए जाते है, इस प्रकार के वन मुख्यतः केरल तमिलनाडु,और कर्नाटक में पाई जाती है ।
  • नीलगिरि,अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियों पर शीतोष्णकटिबंध के वनों को “शोलास” कहा जाता है,इन वनों में पाए जाने वाले वृक्ष जैसे – मगनोलिया,लैरेल,सिनकोना आदि वृक्ष पाए जाते है ।

5. ज्वरीय या मैंग्रोव वन

मैंग्रोववन

 

  • भारत के तटीय क्षेत्रों में जहां पर नदियाँ अपना डेल्टा का निर्माण करती है,वहाँ पर ज्वारीय या मैंग्रोव वन पाए जाते है ।
  • मैंग्रोव एक वनस्पति है,जिसकी जड़े जल में डूबी रहती है ।
  • गंगा, ब्रह्मपुत्र,महानदी,गोदावरी,कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा क्षेत्र में यह वनस्पतियाँ पाई जाती है।
  • गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुंदरी वृक्ष मिलते है,जिनसे केवड़ा एवं एनगोर के वृक्ष पाए जाते है ।

प्राकृतिक वनस्पति का महत्त्व

  • प्राकृतिक वनस्पतियों का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के लाभ प्राप्त होते है ।
  • वनों से भारत में 4000 से अधिक लकड़ियाँ प्राप्त होती है,जैसे सागवन, शीशम, देवदार आदि ।
  • पलास व कुसुम के पौधों पर लाह के कीटों एवं सहतूत के पौधे पर रेशम के कीट पाले जाते है ।
  • भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.7% वनों से प्राप्त हो रहा है ।
  • औषधीय पादप –
    1. सर्पगंधा – यह रक्तचाप के निवारण में प्रयोग होता है, सिर्फ भारत में ही पाया जाता है ।
    2. जामुन – इसका प्रयोग मधुमेह के निवारण में किया जाता है,एवं सिरका बनाया जाता है ।
    3. अर्जुन- इसके पत्तों का ताजा रस कान के दर्दर में प्रयोग किया जाता है ।
    4. नीम – जैव एवं जीवाणु प्रतिरोधक है ।
    5. तुलसी – जुकाम एवं खांसी के निवारण मे प्रयोग होता है ।

FAQ (Frequently Asked Question)

  1. भोजपत्र वृक्ष कहाँ मिलता है ?
  2. A. हिमालय में
  3. किसको “जंगल की आग” कहा जाता है ?
  4. ब्यूटिया मोनोस्पर्मा को जंगल का आग कहा जाता है।
  5. किस पौधे में फूल नहीं होते है ?
  6. फ़र्न
  7. लीसा किस वृक्ष से प्राप्त होता हैं ?
  8. चीड़ के वृक्ष से

Q . भारत में कितने प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?

A. भारत में पाँच प्रकार की वनस्पति पाई जाती है ।

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